पानीपत
क्या आपने देखी है ऐसी एतिहासिक कोस मीनार, पुरानी जीटी पर है मीनारें

क्या आपने देखी है ऐसी एतिहासिक कोस मीनार, पुरानी जीटी पर है मीनारें
पांच सौ साल पहले कोस मीनार जीटी रोड के सबसे महत्वपूर्ण स्थल में शुमार थी। एक मीनार से दूसरी मीनार होते हुए पत्र अपने पते तक पहुंचते थे। राहगीर इसी मीनार पर पहुंचकर सुस्ता लेते थे। जनसुविधाओं का इंतजाम भी यहीं होता था। वक्त के बदलते पहिये की गवाह यह मीनार बनी रही हैं। लेकिन आज यही कोस मीनार अपने धुंधले होते इतिहास को देख रही है।
इनमें से कई अपने अस्तित्व की लड़ाई भी लड़ रही हैं। बच्चे व किशोर भी इन मीनारों के महत्व से अनजान हैं। क्योंकि इन मीनारों को इस तरह संभालकर नहीं रखा गया कि कोई अपने बच्चों को यहां लाकर उसके बारे में संपूर्ण जानकारी दे सके।
शेरशाह सूरी ने करवाया था निर्माण
शेरशाह सूरी ने 1540-45 तक अपने शासनकाल में इन कोस मीनारों का निर्माण शुरू करवाया था। जबकि अधिकतर कोस मीनार का निर्माण 1556 से 1707 के बीच हुआ। इनमें से 10 मीनार करनाल में बवाई गई थी। लेकिन वर्तमान में कुछ ही कोस मीनार दिखाई देती हैं। इनमें करनाल शहर में मीनार रोड पर एक कोस मीनार, सेक्टर चार में एक, करनाल से घरौंडा के बीच में दो व कुंजपुरा के पास एक कोस मीनार दिखाई देती है। इन कोस मीनार की हालत यह है कि इनकी देखभाल करने भी बरसों से कोई नहीं आया है। इनमें से कुछ मीनार पर पुरातत्व विभाग ने अपना बोर्ड लगाया हुआ है। जबकि कुंजपुरा के पास स्थित मीनार और सेक्टर चार स्थित मीनार पर विभाग का बोर्ड भी नहीं लगा है।
स्मारकों का संरक्षण पुरातत्व विभाग की जिम्मेदारी
जनता रॉक्स ट्रस्ट के अध्यक्ष कार्तिक गांधी ने कहा कि कोस मीनार इतिहास के नजरिये से खासा महत्व रखती हैं। इन प्राचीन स्मारकों को संरक्षित रखना पुरातत्व विभाग की जिम्मेदारी है। इसके साथ ही इन स्मारकों के क्षेत्र को इतना आकर्षक बनाया जाना चाहिए, जिससे की लोग इन्हें देखने आएं। इस तरह के राष्ट्रीय महत्व के स्मारक को कोई क्षति पहुंचाता है तो उसे तीन माह तक सजा और पांच हजार रुपये तक जुर्माना किया जा सकता है।
यह भी जानें
कोस मीनार, प्राचीन भारतीय परंपरा में सड़क परिवहन का एक मूलभूत ऐतहासिक तथ्य है। जिसकी शुरुआत मौर्य काल से ही हो चुकी थी। सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य विस्तार के साथ साथ व्यापार, वाणिज्य एवं धार्मिक यात्राओं के लिए अनेकों सड़कों का निर्माण करवाया था। कालांतर में गुप्त काल से यह परंपरा होती हुई अफगान शासक शेरशाह सूरी ने मध्य काल में इन कोस मीनारों की परंपरा की शुरुआत की। कालांतर में जाहांगीर, शाहजाह के समय में यह कोस मीनारों के साथ ऐतिहासिक रूप से सामने आई। वर्तमान में जो भी कोस मीनार दिखाई देती हैं, वह मुगल स्थापत्य का एक बेजोड़ नमूना है।
Source : Jagran